सितारे टूटकर गिरना हमें अच्छा नहीं लगता
गुलों का शाख से झरना हमें अच्छा नहीं लगता
सफ़र इस जिंदगी का यूँ तो है अँधा सफ़र लेकिन
उमीदें साथ हैं वरना हमें अच्छा नहीं लगता
थे ताज़ा जब तलक हमको किसी की याद आती थी
पुराने ज़ख्म का भरना हमें अच्छा नहीं लगता
हमारा नाम भी शामिल हो अब बेखौफ बन्दों में
जहाँ से इस कदर डरना हमें अच्छा नहीं लगता
मुहब्बत हम करें तेरी इबादत सोचना भी मत
तुम्हारा ज़िक्र भी करना हमें अच्छा नहीं लगता
भला हो या बुरा अब चाहे जो होना है हो जाये
''किरण" ये रोज़ का मरना हमें अच्छा नहीं लगता
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डॉ कविता 'किरण''
प्रभावशाली मनभावन गज़ल। सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत-बहुत साधुवाद।
आनन्द विश्वास।
bahut khub!
ReplyDeleteबहुत ही सहज शब्दों में कितनी गहरी बात कह दी आपने..... खुबसूरत अभिवयक्ति....
ReplyDeleteखूबसूरत भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteरदीफ़ भी अच्छी लगी
नाखुदा बनके कश्तीको साहिल पे ले जाना हमें अच्छा नहीं लगता...,
ReplyDeleteबनके रोशनी सुहानी आफताबकी किसी घरको जला देना हमें अच्छा नहीं लगता.... ॥
मैं तो आज धन्य हो गया... आपके ब्लॉग पर आ कर..
ReplyDeleteaur apke aane se hum dhany hue..hahaha..dhanywad!!!
Deleteसुंदर भावाभिव्यक्ति .....
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